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परिचय
दारुल-उलूम-ताजुल-मसाजिद मध्य भारत की सबसे बड़ी इस्लामी संस्थाओं में से एक है। Hifz (पवित्र क़ुरान कंठस्थ करने) की उच्च गुणवत्ता की शिक्षा प्रदान करने के अलावा Maktab (प्राथमिक) और Sanviyah (माध्यमिक) Aalimiat (उच्चतर माध्यमिक अथवा इस्लामी धर्मशास्त्र में स्नातक) इस का मुख्य उद्देश्य हें, यह धार्मिक प्रचार और सामाजिक कार्यों के क्षेत्र में 1949 इ० से अपनी सेवा प्रदान कर रहा हे। यह विश्व विख्यात इस्लामिक संस्था नदवतुल-उलमा लखनऊ की एक सम्मानित शाखा है। इसकी स्थापना मौलाना मुहम्मद इमरान खान नदवी अजहरी ने अल्लामा सैयद सुलैमान नदवी, तत्कालीन भोपाल रियासत के काजी-ए-शहर और हजरत मौलाना शाह याक़ूब साहब मुजद्दीदी الرحمة عليهم की मदद से की थी।
दारुल-उलूम-ताजुल-मसाजिद आधुनिक विज्ञान विषयों के साथ-साथ नदवतुल-उलमा द्वारा अपनाए गए पाठ्यक्रम का पालन करता है। इसके विद्वान पूरी दुनिया में पाए जाते हैं और विभिन्न शैक्षणिक क्षेत्रों में अपनी ईमानदार और समर्पित सेवाओं के लिए जाने जाते हैं। यह शहर और उपशेहरी क्षेत्रों में अपने 40 संबद्ध मदरसों को वित्तीय सहायता भी प्रदान करता है।
शैक्षिक गतिविधियों के साथ-साथ, दारुल-उलूम-ताजुल-मसाजिद के तीन और प्रमुख उद्देश्य हैं:
- विधार्थियों में उच्च शिष्टाचार और व्यवहार का प्रशिक्षण एवं शालीनता और इस्लामी बौद्धिक वर्चस्व की जीवंत भावना विकसित करना।
- देश के दूर दराज के इलाकों में इस्लामी शिक्षाओं का प्रचार प्रसार करना।
- भारत की सबसे भव्य और बड़ी मस्जिद “ताजुल-मसाजिद” की अपूर्ण इमारत को पूरा करना।
दारुल उलूम ताजुल मसाजिद का पाठ्यक्रम नदवतुल उलमा लखनऊ के पाठ्यक्रम के अनुसार है जिसमें इस्लाम धर्म के ज्ञान के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा, हिंदी, अंग्रेजी, गणित, विज्ञान, भूगोल एवं इतिहास आदि सम्मिलित हैं।
दारुल उलूम ताजुल मसाजिद में शिक्षा व्यवस्था में कुरान पढ़ाना समझाना एवं कंठस्थ कराना, प्राथमिक, माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक तक की शिक्षा सम्मिलित है जो के चार चरणों में है इसके इतर भोपाल के आसपास बड़ी संख्या में ऐसे मदरसे हैं जो दारुल उलूम ताजुल मसाजिद से संबद्ध हैं जहां पर्याप्त संख्या में छात्र शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं इन मदरसों की शिक्षा व्यवस्था पर दृष्टि रखने के साथ-साथ उन्हें आर्थिक सहायता भी दी जाती है यहां की (आलिम) की उपाधि को मुस्लिम विश्वविद्यालय अलीगढ़ में बी।ए। के समकक्ष मान्यता प्राप्त है।
दारुल उलूम ताजुल मसाजिद में अध्ययनरत किसी छात्र से शिक्षा के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाता। साथ ही छात्रावास में रेहने वाले निर्धन छात्रों को छात्रवृति दी जाती है और उच्च कक्षाओं के सभी छात्रों को उनके स्तर अनुसार शिक्षा वृत्ति भी प्रदान की जाती है ताजुल मसाजिद का धार्मिक प्रचार के कार्य (तब्लीग़) से भी गहरा और पुराना संबंध है। 1948 इ० से लेकर 2002 इ० तक निरंतर विश्व स्तरीय तबलीग़ी इज्तिमा (वैचारिक समागम सभा)यहां आयोजित होता था और दारुल उलूम का पूरा स्टाफ और कार्यकर्ता उसकी व्यवस्था में लग जाते थे।
दारुल उलूम की समस्त शिक्षा और व्यवस्था की उत्तरदायी अधिकारिक परिषद है जो यहां की नियमावली के अनुसार है इस में संपूर्ण भारत से चयनित सदस्य सम्मिलित हैं उनमें एक बड़ी संख्या ज्ञानियों की होती है अन्य कुछ सदस्य प्रतिभा वान और समाज के हितैषी होते हैं सदस्यों का चयन 5 वर्ष हेतु होता है अधिकारिक परिषद की और से दारुल उलूम का अध्यक्ष प्रत्येक कार्य के क्रियान्वयन का उत्तरदायी होता है।