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उद्देश्य और लक्ष्य
मस्जिद शकूर खां में उस स्थान पर जहाँ कभी अखाड़ा हुआ करता था एक बार ज़ोहर की नमाज़ के पश्चात हज़रत मौलाना इमरान खां नदवी अज़हरी व मौलवी हशमत अली साहब में एक चर्चा हुई सौभाग्य से उस चर्चा की जानकारी हमको मिली जिसका विवरण स्वयं मौलाना हशमत अली साहब द्वारा दिया गया है।
वह उल्लिखित करते हैं कि स्व० मौलाना ने चर्चा में यह कहा कि:
“अगर ये दारुल उलूम स्थापित हुआ और इंशाअल्लाह अवश्य होगा तो इसमें वही कार्य करेगा जो इसकी स्थापना के उद्देश्यों से सहमत होगा और इसकी स्थापना का वास्तविक उद्देश्य इस्लाम की सेवा है। उसको जीवित रखने व सफल बनाने हेतु संघर्ष करना है। ताकि लोग क़ुरान को अपनाएं और जिस तरीके को रसूल अकरम (सल०) ने अपनी हदीसों व सुन्नतों में बताया है उसको अपने जीवन में उतारें। अभी हमारे पास संसाधनों की कमी होगी, आर्थिक कठिनाइयां ही कठिनाइयां होंगी। हमें ऐसे लोग चाहिए जो सांसारिक मोह, स्वयं का लाभ तथा लड़ाई झगड़े से ऊपर उठ कर केवल ईश्वरीय इच्छा हेतु कार्य करें, जो कुछ मिल जाये उस पर संतुष्ट हों अगर न मिले तो भी कोई शिकायत न हो।
हमारे दारुल उलूम का वास्तविक उद्देश्य त्रुटि मुक्त व शुद्ध इस्लामिक श्रद्धा का प्रचार प्रसार, उचित इस्लामी विश्वास व श्रद्धा की इस प्रकार शिक्षा कि इस्लाम के शत्रुओं द्वारा प्रचारित अनुचित व घालमेल युक्त अर्थों का सुधार हो सके और ऐसे लोग जन्म लें जो इस कार्य की ज्योति आगे भी अपने हाथों में उठाएं, यह कार्य ऐसे स्थान पर ही किया जा सकता है जहाँ इस्लामी शिक्षा दी जा रही हो इस्लाम के लाभों का बखान किया जा रहा हो और ह्रदय में बिठाया जा रहा हो। इस प्रकार ऐसे व्यक्ति तैयार किये जा सकते हैं जो चिंतन व श्रद्धा के अंदर समस्त चुनौतियों का सामना कर सकें।
मौलाना ने यह भी कहा:
हमारे दारुल उलूम के उद्देश्यों में यह भी होगा की उचित व त्रुटीमुक्त श्रद्धा, इस्लामी नियम विरुद्ध परम्पराओं से मुक्त विचारधारा रखने वाले छात्रों का एक ऐसा जत्था तैयार किया जा सके जो अपने धर्म पर पक्का विश्वास रखने वाला अपने इतिहास व संस्कृति और परम्पराओं का सम्मान करने वाला और वर्तमान व भविष्य का निर्माण करने वाला हो।
हमने मुसलमान बच्चों को धार्मिक शिक्षा देने का कार्यक्रम इस लिये बनाया है कि हमारी दृष्टि में इस्लाम ही केवल ऐसी धारा है जो मानवता की समस्त कठिनाईयों से मुकाबला करता, उनका उचित व सटीक समाधान प्रस्तुत करता और निरंतर सीधे मार्ग का मार्गदर्शन करता है। इसी में मुसलमानों के लिये धर्म एवं संसार दोनों की सफलताएं छुपी हैं। हमारा सबसे बड़ा उद्देश्य सही इस्लामी चिंतन के साथ इस्लामी शिक्षा के प्रचार प्रसार हेतु तन मन धन लगाने वाला जत्था पैदा करना है। यही जत्था भारतीय मुसलमानों का मार्गदर्शक बनेगा तथा नेतृत्व करेगा यही उनको भटकाव का शिकार होने से बचाएगा। अगर यह जत्था पैदा हो गया तो फिर भारतीय मुस्लमान कभी भी निराशा के शिकार नहीं होंगे”।
इस अति प्रभावी चर्चा के पश्चात किसी अन्य प्रमाण कि कदापि आवश्यकता नहीं थी लेकिन स्पष्टीकरण के रूप में इस सत्य को दोबारा सामने रखना आवश्यक है कि दारुल उलूम ताजुल मसाजिद की स्थापना 1950 ई० में उस समय हुई जब भोपाल रियासत भारतीय संघ में विलीन हो रही थी। और धार्मिक शिक्षा व धार्मिक कार्यों कि सुरक्षा अविश्वसनीय हो गयी थी। ऐसे कठिन समय में मौलाना मोहम्मद इमरान खां नदवी ने अपने कुछ मित्रों और समान विचार वाले तथा समाज के हितेषी लोगों के सहयोग से दारुल उलूम को स्थापित किया और उपरोक्त चर्चा के प्रकाश में हम यह उल्लेख कर रहे हैं कि दारुल उलूम के मूल उद्देश्य उसके पवित्र विचार रखने वाले संस्थापकों की दृष्टि में निम्नलिखित हैं।
- ऐसे ज्ञानियों की तैयारी जो धार्मिक शिक्षा के विशेषज्ञ हों तथा आधुनिक शिक्षा व समय की अवश्यकताओं से इतने परिचित हों कि नयी समस्याएं व परिस्थितियों के आगे उचित व सटीक समाधान ढूंढ सकें।
- ऐसे ज्ञानियों की तैयारी जो बदलती परिस्थितियों में मुस्लिम समाज के मार्गदर्शक का कार्य निभा सकें।
- ऐसे सम्बोधनकर्ता व लेखक पैदा करना कि जो समय की बदलती परिस्थितियों और नाड़ी पर उंगली रख कर अपनी वाणी व क़लम से समाज का मार्गदर्शन कर सकें और इस्लाम धर्म के प्रचार प्रसार के साथ उस पर होने वाले आक्रमणों से न केवल सुरक्षित रख सकें बल्कि आगे बढ़कर आक्रमणकर्ताओं के मनोविज्ञान, संस्कृति तथा उनके झूठे विश्वास पर आक्रमण करके उनको दर्पण दिखाने का कार्य भी उचित ढंग से कर सकें।
- मुस्लिम समाज में मानवीय और धार्मिक जागृति का प्रसार।
- दारुल उलूम की शिक्षा पद्धति और नदवा अभियान के चिंतन से जुड़े मदरसे व संस्थाओं की एक भव्य श्रृंखला स्थापित करना।
- एक ऐसा पाठ्यक्रम तैयार करना जिसमें समय के साथ ऐसे उचित बदलाव होते रहें जो समाज की धार्मिक व सांस्कृतिक आवश्यकताओं को पूरा कर सकें।
- अपूर्ण ताजुल मसाजिद को पूर्णता तक पहुंचाना और आवश्यकता अनुसार इसकी व्यवस्थाएँ व देख रेख करते रहना।
- ताजुल मसाजिद की भूमि वर्तमान शासन से प्राप्त करने के लिए प्रयास करते रहना।
- ताजुल मसाजिद हेतु निस्वार्थ दान की सुरक्षा को विश्वसनीय बनाना और उचित वयवस्थाएँ लागू करना।
- दारुल उलूम ताजुल मसाजिद हेतु निस्वार्थ दिए गये दान को फलदायक बनाना और विभिन्न सरोकारों से संस्था की आमदनी के माध्यम उत्पन्न करना।